'ज़िन्दगी के वो जिंदादिल 102 साल जोहरा सहगल'
'ज़िन्दगी के वो जिंदादिल 102 साल'
'साहिबजादी ज़ोहरा बेगम मुमताजुल्ला ख़ान' जो बाद में जोहरा सहगल के नाम से सिनेमा की दुनिया में प्रसिद्ध हुईं. जोहरा एक ऐसी जिंदादिल महिला थीं, जिनके लिए उम्र सिर्फ एक संख्या रही है. उनके लिए थीं शब्द इसलिए भी लिख रहा हूँ, कि वो अब भौतिक रूप से इस दुनिया में नहीं है, लेकिन जोहरा सहगल अपनी अदाकारी के जरिए हमेशा ज़िन्दा रहेंगी. जोहरा ने अपनी ज़िन्दगी में हड्डियां पिघला देने वाला संघर्ष किया, लेकिन यह संघर्ष उन्हें और जिंदादिल बनाता गया. जोहरा केवल सिनेमा के लिए ही नहीं, सभी महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल के रूप में रही हैं. उनसे केवल महिलाएं ही नहीं हर कोई सीख सकता है, कि मुश्किलों को हराकर ज़िन्दगी कैसे जीते हैं..
श्वेत - श्याम सिनेमा के शुरुआती दौर सन 1945 से लेकर 2008 तक सक्रिय रहीं, जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी में सौ से अधिक वसंत देखे. अपनी सिनेमाई यात्रा में खुद जब 80 साल की उम्र पार कर चुकी थीं, तब उनकी अदाकारी, एवं उनकी शख्सियत में जिंदादिली बढ़ रही थी. हमेशा उनकी उम्र ज्यादा होने के कारण कहा जाता था, 'जोहरा सहगल' ऐसी महिला हैं, जिनके सामने भारतीय सिनेमा का जन्म हुआ.. जिनके सामने भारतीय सिनेमा घुटनों के बल चला, उन्हीं के सामने हिन्दी सिनेमा का झंडा बुलन्द हुआ.. सच है जोहरा सहगल प्रेरणा का भी नाम है. जोहरा सहगल को भारतीय सिनेमा की लाडली कहा जाता था. हिन्दी सिनेमा में जितने रंग थे, उससे कहीं अधिक रंग उनकी ज़िन्दगी में थे. ज़ोहरा का अपने अभूतपूर्व जीवन के प्रति लगाव, उत्साह लगातार नई पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा..
जोहरा सहगल की सेकेंड लास्ट फ़िल्म के निर्देशक आर. बाल्की कहते हैं - "अभी तक मैं अपनी ज़िन्दगी में जितनी भी महिलाओं से मिला हूं, जोहरा सहगल सबसे जिन्दादिल महिला रही हैं.. अब तक मुझे मिली सबसे बढ़िया अभिनेत्रियों में से वह एक हैं. जोहरा सहगल ने आर बाल्की की 2007 में आई फ़िल्म 'चीनी कम' में अमिताभ बच्चन की 'बिंदास' माँ का किरदार निभाया था. इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन ने जोहरा सहगल से प्रभावित होकर कहा था - "जोहरा जी 95 साल की बच्ची हैं, उन्हें कोई भी बुजुर्ग न समझें, सभी को पुराने किस्से सुनाती हैं, कभी भी निराश नहीं होतीं. उनके जैसी महिलाएं विलक्षण होती हैं". एक तो कोई इतनी उम्र तक पहुंचता नहीं है, और फिर भी जिवित हुआ तो बिस्तर से उठता नहीं है, लेकिन जोहरा सहगल अपनी ऊर्जा से पूरी दुनिया को हैरान करती थीं.. यूएनपीएफ उन्हें साल 2008 में उनकी अभूतपूर्व सिनेमाई जीवन यात्रा के लिए सिनेमा 'सदी की लाडली' के सम्मान से नवाजा था.
ज़ोहरा सहगल भारतीय सिनेमा के पैदा होने से पहले 27 अप्रैल 1912 को उत्तर प्रदेश में रामर के पठान परिवार में जन्मी थीं. मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ी ज़ोहरा बचपन से ही विद्रोही स्वभाव की रही हैं. बचपन से ही शरारती जोहरा सहगल को अपने चाचा के साथ भारत, एशिया सहित यूरोप की यात्रा करने का मौका मिला.. बचपन से ही घूमने-फिरने के कारण दुनिया देखने से उनका एक दृष्टिकोण बना था, जो आजीवन उनके साथ रहा. इसी यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात अपने पति से हुई थी.. कामेश्वर नाथ सहगल देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक, चित्रकार, एवं नर्तक भी थे. उस पिछड़े दौर में मुस्लिम लड़की होते हुए, अपने से लगभग 10 साल छोटे दूसरे धर्म के लड़के से प्रेम विवाह का सोचना भी बहुत बड़ा विद्रोह था.. इससे समझा जा सकता है, कि जोहरा सहगल कितनी जियाली महिला थीं, ज़ोहरा के पति उनके लिए लिए धर्म परिवर्तन के लिए भी तैयार थे, लेकिन ज़ोहरा ने कहा इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, जबकि मैं खुद ही नास्तिक हूं. साल 1942 में दोनों ने शादी कर ली..दोनों कुछ सालो के लिए अल्मोड़ा में नृत्य समूह पर मिलकर काम किया, लेकिन संतुष्टि नहीं हुई तो अपने पति के साथ कुछ सालों के लिए लाहौर चली गईं गईं, वहाँ अपना खुद का डांस समूह बनाया.. अभिनय के प्रति उनके जुनून बढ़ने कारण बंबई लौट आईं..
साल 1945 में पृथ्वी थिएटर स्वर्गीय पृथ्वीराज कपूर के साथ 400 रू मासिक वेतन पर जुड़ीं. उन्होंने उनके साथ कई प्रसिद्ध नाटकों में काम किया. लगभग 15 साल तक जुड़ी रहीं. पृथ्वीराज कपूर का वो बहुत आदर किया करती थीं और थिएटर में उन्हें अपना गुरु मानती थीं. इसी दौरान इप्टा समूह में शामिल हुईं. मेन स्ट्रीम फ़िल्मों में उनकी शुरुआत 1946 में ख़्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म 'धरती के लाल' फिल्म से हुई. वहीँ चेतन आनंद की फ़िल्म नीचा सागर में जोहरा सहगल ने बेजोड़ अभिनय किया. 'धरती के लाल' पहली भारतीय फ़िल्म थी, जिसे कान फ़िल्म समारोह में गोल्डन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. ज़ोहरा ने अपनी ज़िन्दगी को क्या खूब जिया वैसे ही उनकी सिनेमाई दुनिया में भी कमाल के रंग हैं.... थिएटर की दुनिया में आर्टिस्ट तो बहुत हैं, लेकिन रंगमंच में एक प्रसिद्ध गुरु रहे हैं.. वैश्विक रंगमंच में शायद ही कोई होगा, जो इब्राहीम अल्काजी साहब के नाम से परिचित न हो.. अल्काजी साहब सभी के लिए गुरु समान थे.. उनके एक प्रसिद्ध नाटक दिन के अंधेरे में बेगम कुदसिया की निभाई गई, भूमिका आज भी अमर है..
गुरुदत्त साहब खुद भी एक मंझे हुए क्लासिकल नर्तक थे, लेकिन जोहरा ने 1951 में आई फ़िल्म 'बाज़ी' में एवं राजकपूर साहब की फ़िल्म 'आवारा' के प्रसिद्ध स्वप्न गीत की कोरियोग्राफ़ी भी की... जोहरा ने 1960 में 'द रेस्कयू ऑफ प्लूफ्लेस' में काम किया. 1964 में बीबीसी पर रुडयार्ड किपलिंग की कहानी में काम करने के साथ ही 1976-77 में बीबीसी की टेलीविजन श्रृंखला पड़ोसी नेबर्स की 26 कडि़यों में संचारक की सफल भूमिका निभाई... बाद में ज़ोहरा सहगल अंग्रेजी धारावाहिकों और फ़िल्मों, ख़ासकर हॉलीवुड फ़िल्मों से एक बार फिर सक्रिय हुईं। ग़ज़ब यह है कि यह सक्रियता उन्होंने अस्सी साल की उम्र के बाद तो देखने लायक होती है...
जोहरा सहगल यूँ ही जिंदादिल नहीं थीं, उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में आए हुए दुख को कभी सीरियस नहीं लिया.. महज एक साल की उम्र में ग्लूकोमा की वजह से वह अपनी एक आंख की रोशनी खो चुकी थीं, लेकिन इलाज के बाद उन्हें दिखाई देने लगा था.. फिर भी उनकी आंख कभी भी पूर्णतः ठीक नहीं हुई... बचपन में ही अपनी माँ को खो चुकी जोहरा सहगल हमेशा से अपनी माँ को याद करते हुए हँसने लगती थीं.. दुनिया भर से बगावत करने के बाद अपने प्रेम को पाने के बाद जल्द ही असामयिक अपने पति को खो दिया.. इसका भी मलाल नहीं था.. हमेशा फ़िल्मों में जिंदादिल अभिनय करती थीं. ज़ोहरा सहगल फ़िल्में लगभग ना के बराबर देखती थीं, लेकिन क्रिकेट मैच वो बड़े चाव से देखा करती थीं. आँखें कमज़ोर होने के कारण उन्हें स्कोरकार्ड देखने में दिक्कत होती थी.. अपनी बेटी से क्रिकेट के मैच के दौरान मैच का स्कोर लगातार पूछती रहतीं थीं. हालांकि उनका कोई पसंदीदा खिलाड़ी नहीं था...
80 साल की उम्र के बाद आदमी जीने की आशा छोड़ देते हैं, लेकिन इस उम्र में उनकी अदाकारी परवान चढ़ रही थी.. 'भाजी ऑन द बीच', 'दिल से', 'ख्वाहिश', 'हम दिल दे चुके सनम', 'बेण्ड इट लाइक बेकहम', 'साया', 'चिकन टिक्का मसाला', 'मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइसेज', 'वीर-जारा' उन्होंने पृथ्वीराज कपूर के साथ काम करना शुरू किया और उनके परिवार की चौथी पीढ़ी रणबीर कपूर के साथ तक काम करती रहीं, ज़ोहरा के पास. कमाल का तर्कशक्ति एवं खुद पर हंसने का हुनर भी आता था. उनका एक कोट बहुत मशहूर है- तुम क्या अब मुझे इस तरह देखते हो जब में बूढ़ी और बदसूरत हो गई हूं, तब देखते जब मैं जवान और बदसूरत थी.... हमेशा फ़िल्मों में सुपर दादी की भूमिकाएं निभाते हुए गुदगुदाती थी इस उम्र में उनकी कॉमिक टाइमिंग बेमिसाल रही है.
अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर जोहरा स्वास्थ्य के कारण परेशान रहने लगीं थीं, लेकिन कभी भी निराश नहीं हुई.. हमेशा हँसती रहती थीं. अपने आखिरी साल तक अपना जन्मदिन मनाती थीं..बिस्तर से उठ नहीं पाती थीं, लेकिन फ़िल्मों में काम करने की हसरतें फिर भी उनकी जवान थी.
अपनी जिन्दादिल जीवन को जी कर.. 10 जुलाई 2014 को जोहरा सेहगल ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया. जोहरा ने जीवन के हर रंग को गहराई से देखते हुए 102 सालों की जीवन यात्रा पूरी की. जोहरा सहगल कभी भी मर नहीं सकतीं... अपनी रचनात्मकता सिनेमाई यात्रा के ज़रिए ज़िन्दा रहेंगी.. जोहरा सहगल को मेरा सलाम...
दिलीप कुमार
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