राहुल रॉक

राहुल रॉक ❣️

मैंने राहुल गांधी के व्यक्तित्व को पढ़ा समझने की कोशिश की. वो तो इतिहास ज्यादा न्याय करेगा. वैसे किसी की किसी से तुलना नहीं करना चाहिए, चूंकि राजनीति संभावनाओं पर टिकी होती है. तात्कालिक नेताओं को तुलनात्मक रूप से देखना ही चाहिए.. नरेंद्र मोदी से ज्यादा परिपक्व, मजबूत राहुल दिखते हैं, क्योंकि पर्सनल तौर पर ऐसे घेरा जाए तो व्यक्ति अपना आपा खो देता है ...राहुल ने कभी भी वो बातेँ नहीं कीं. मोदी गालियाँ गिनाने लगते हैं, कि मुझे क्या - क्या बोला जाता है...यहां तक कि गालियों की लिस्ट भी बनाते हैं, कि मुझे कितनी गालियाँ दी गई हैं. जाहिर सी बात है कि इतने बड़े पद पर आप आसीन हैं, तो कोई गालियाँ भी देगा.. सहनशीलता तो होना ही चाहिए. वहीँ राहुल को क्या क्या नहीं बोला गया.. उस व्यक्ति ने नफ़रत का जवाब मुहब्बत से दिया है. 

राहुल की खूबी से ज्यादा सादगी अच्छी-खासी प्रभावित करती है. अभी भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने देश को एकता के सूत्र में बांधने के लिए दक्षिण से उत्तर की ओर पूरे देश को पैदल देखा, आम तौर पर इतनी सुख - सुविधाओं वाला व्यक्ति इतना पैदल चल ही नहीं सकता. कहते हैं कि हिजरत से ही त्याग की भावना पैदा होती है. हाल ही में राहुल की छीन ली गई संसद सदस्यता, एक अदद बंगला भी छीन लिया गया. राहुल ने एक बार भी इसके विरुद्ध कोई बात नहीं की, नियमानुसार तय वक़्त पर घर छोड़ दिया, यह कोई महानता की बात नहीं है, लेकिन जिस देश में छोड़ने की परंपरा न हो वहाँ छोड़ना किसी नज़ीर से कम नहीं है. 

राहुल को मार्केटिंग करनी होती तो उनके परिवार के सर्वोच्च पदासीन लोग शहीद हो गए लेकिन कभी नहीं बोलते....राहुल को पिता के हत्यारों से भी नफरत नहीं हैं... क्योंकि एक अति का जवाब अति तो नहीं है. माफ़ करने वाला बड़ा होता है. राहुल कहते हैं माफ़ कर देने से ज्यादा सुकून देह कुछ भी नहीं है. वाकई माफ़ करने की यह प्रवृत्ति राहुल को बहुत खास बनाती है. मैंने आजतक राहुल को कभी धर्म, जाति, नफ़रत, द्वेष, ईर्ष्या आदि पर बोलते नहीं सुना.. जब कि इस व्यक्ति के परिवार के कई लोगों की हत्या कर दी गई. स्कूली शिक्षा भी घर में रहकर हुई, कॉलेज, विश्वविद्यालय की पढ़ाई सुरक्षा के लिहाज से नाम बदलकर हुई.. फिर भी राहुल के दिमाग में किसी के लिए भी घृणा नहीं है. हमें ऐसे ही नायक चाहिए, जो नफ़रत घृणा की बात न करें.. जो नव पीढ़ी को मुहब्बत करना सिखाए... वैसे भी राहुल ने आज नफ़रत के दौर में मुहब्बत की दुकान खोल रखी है.. राहुल की मुहब्बत की दुकान आज देश की सर्वोच्च जरूरतों में से एक है. 

राहुल को कई लोग अपरिपक्व बोलते हैं, क्योंकि भारतीय राजनीति में परिपक्वता का मतलब, धूर्तता, मक्कारी, धर्मान्धता फैलाना आदि ही माना जाता है.. यहां बात नहीं बनती तो एक जुमला फेंका जाता है, राहुल राजनीति के लिए नहीं बने हैं. अगर राजनीति के लिए नहीं बने हैं तो फिर उसको इतना सीरियस क्यों लिया जा रहा है... एक ही व्यक्ति का कितना अपमान किया जाएगा.. वैसे भी तात्कालिक राजनीति भले ही राहुल को असफल कहती हो, लेकिन चुनाव जीतना कभी भी सफलता का परिचायक नहीं रहा है.. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति महान अब्राहम लिंकन अपने जीवन में कई चुनाव हारे, लेकिन उनकी सफलता आज उनकी गवाही देती है... ज़िन्दगी में असफ़लता पर असफ़लता का मुँह देखने वाले अब्राहम लिंकन आज दुनिया के महानतम इंसानो में गिने जाते हैं.. दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क के करेंसी पर उनकी तस्वीरें हैं, हालांकि अब्राहम लिंकन भी लगातार चुनाव हारने पर अपने दौर के पप्पू रहे होंगे... हम सभी आजीवन दौड़ते है, कुछ हासिल कर लेते हैं, कुछ नहीं, लेकिन जीवन में असल उद्देश्य तो एक बेहतर इंसान बनना ही होता है.. वैसे भी हिटलर हमेशा सत्ता के केंद्र में रहा तब तो उसे सफल, लोकप्रिय नेता कहा जाता था, लेकिन आज उसे कोई अच्छी भावनाओं से याद नहीं करता... वैसे भी घृणा, नफ़रत का दूसरा नाम एडॉल्फ हिटलर ही है... आज राहुल चुनाव हार जाते हैं, हालांकि एक इंसान के तौर पर दिल जीत लेते हैं.. 

वैसे भी व्यक्तिव में ठहराव, स्थायित्व होना बहुत आवश्यक है, शांत स्वभाव उससे अधिक आलोचना को पचाने की अद्भुत क्षमता राहुल को प्रेम बाँटने वाला नायक बनाती हैं. यह राहुल की शख्सियत है, उनके एक ट्वीट से पूरी सरकार की चूलें हिल जाती हैं, आज राहुल को नॉन पोलिटिकल इंसान कहकर घेरा जाता है, लेकिन पूरी की पूरी मशीनरी एक इंसान को घेरने के घृणित प्रयास करती है.. पूरी की पूरी केंद्र सत्ता के पास एक आदमी को बदनाम करने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं है... पूरी भाजपा सरकार एक आदमी को टार्गेट करती है, यह खूबी राहुल को बहुत कमाल का लीडर सिद्ध करती है. 

आज के नफ़रत के दौरे में राहुल गांधी के भाषण बच्चों को सुनना चाहिए, उनकी मंशा विपक्ष मुक्त भारत की नहीं है. उनका बदला लेना लक्ष्य नहीं है, बल्कि माफ करना है.. उनके भाषण में धर्मवाद, जातिवाद, ईर्ष्या, की बातेँ नहीं होती, मेरी नजर में सहने वाला ज्यादा परिपक्व होता है, ना कि भावनात्मक प्रचारित करने वाला....यही शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए, कि हम आने वाली पीढ़ियों को क्या देकर जा रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सड़क पर चलते हुए, बच्चे, बूढे,महिलाएं, लड़कियां बुजुर्ग, किसान, मजदूर, आम, खास, सभी राहुल से कितनी आत्मीयता से मिल रहे थे. ऐसी तस्वीरें हिन्दुस्तान की राजनीति में देखने को नहीं मिलती, कैसे लड़कियां राहुल का हाथ थामकर उनके गले लगते हुए, चल रहीं थीं.. राहुल वाकई महिलाओं/ल़डकियों को कितना अपनापन, प्रेम, सुरक्षात्मक एहसास देते होंगे. ऐसे फ़िल्मों में देखने को मिलता है, राजनीति में तो बिल्कुल भी नहीं होता. वाकई राहुल आज नफ़रत की राजनीति के दौर में एक उम्मीद जैसे लगते हैं... राहुल कोई लीडर नहीं है....सभी के लिए दिल में मुहब्बत रखने वाले नायक है. 

हो सकता है राहुल उनके आलोचकों को पागल दिखते हों तो यह भी तो लोगों के दिमाग में डाला गया है . सोचिए हर बुद्धिमान व्यक्ति पागल ही दिखता है.... दुनिया का हर व्यक्ति पहले नकारा गया है. आज जो बोलते हैं कि राहुल राजनीति के लिए नहीं बने हैं, वो तो खुद मानते हैं कि राहुल अच्छे इंसान है, तो फिर राहुल को बेवक़ूफ़ कहने से क्या होगा. लिहाज़ा राजनीति बदलना होगा.. वैसे भी एक व्यक्ति ही इतिहास बनाता है.. आज राहुल की संसद सदस्यता ख़त्म हो जाने के बाद भी उनके विरोधियों को सुकून नहीं है... वैसे राहुल चल पड़ा है पूरे हिन्दुस्तान में मुहब्बत की दुकाने खोलने के लिए.. इसलिए नफ़रत, घृणा दिल में रखने वालों को दिक्कत होना लाजिमी है. मान लिया राहुल फिर से हार जाएंगे. यह भी मान लिया कि राहुल गांधी अच्छे नेता नहीं हो सकते, लेकिन उदारवाद, शिक्षित हैं... कम से कम संकीर्ण सोच तो बिल्कुल नहीं है, सौ की सीधी बात कम्युनल नहीं हैं इतिहास ज़रूर न्याय करेगा... 

                      दिलीप कुमार

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