मुसाफ़िर जाएगा कहाँ
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ
बर्मन दादा संगीत की दुनिया में सबसे अग्रणी नाम रहे हैं. जो भी संगीत रचा वॊ सुपरहिट रहा. वो संगीत की बंदिशों का पालन करते हुए, सिनेमा के व्यपारिक हित को भी साधते थे.. नवकेतन फिल्म्स की सफ़लता का प्रमुख कारण बर्मन दादा भी रहे हैं.. आम तौर पर बर्मन दादा, शुरुआत में साहिर लुधियानवी को गीत लिखने की जिम्मेदारी देते थे, लेकिन फिर अचानक उनका साथ छूट जाने से मजरुह सुल्तानपुरी से लिखवाने लगे थे... देव साहब एक दार्शनिक फिल्म गाइड बना रहे थे... सब कुछ था... कमी थी, तो मजरुह, एवं साहिर की... बर्मन दादा दोनों से तो कह नहीं सकते थे, थोड़ा सख्त स्वभाव था... आख़िरकार विजय आनन्द ने कविराज शैलेन्द्र जी को गाइड के गीत लिखने की जिम्मेदारी सौंप दी...
गाइड के इस कालजयी 'गीत' मुसाफ़िर जाएगा कहाँ' को केवल और केवल मजरुह - साहिर, शकील या फिर शैलेन्द्र जी ही लिख सकते थे... शैलेन्द्र जी ने इस दार्शनिक गीत को अपनी कलम से उकेर दिया.. 'यहां कौन है तेरा मुसाफ़िर जाएगा कहाँ'... इस गीत को बर्मन दादा ने ही संगीतबद्ध किया, और उन्होंने ही गाया. बर्मन दादा की आवाज़ बहुत अलग, ऐसी रही है, जैसे कोई दूसरे लोक का प्राणी गा रहा है. बर्मन दादा ने खुद को दार्शनिक गायक के रूप में स्थापित किया. या कहें उन्होंने जो भी गाया उस गीत को दार्शनिक गीत का खिताब मिला है.
ऐसा ही बर्मन दादा का गाया हुआ दार्शनिक गीत 'वहाँ कौन है तेरा मुसाफ़िर जाएगा कहाँ'....
फिल्म शुरू होते ही गीत बैकग्राउंड में बजता है. यह गीत तय कर देता है कि गाइड दार्शनिक फिल्म है. उधेड़बुन में राजू गाइड (देव साहब) जेल से छूटने के बाद खुद को बहुत अकेला पाते हुए खुद से कहते हैं.. "राजू जिस शहर पर तूने राज किया. जहां तुम्हें इतना मान सम्मान मिला यही दुनिया तुम्हें क्या खाक इज्ज़त देगी. यहां से कहीं बहुत दूर निकल जाओ"
वहाँ कौन है तेरा
मुसाफिर जाएगा कहाँ
दम ले ले घड़ी भर
ये छइयाँ पाएगा कहाँ
वहाँ कौन है तेरा
राजू गाइड (देव साहब) सोच रहा है, राजू इस शहर में तुम्हारा कोई भी नहीं है अगर तुम्हें यहां मिलेगा तो सिर्फ़ और सिर्फ़ जिल्लत मिलेगी.. सभी तुम्हें हिकारत की नज़रों से देखेंगे.. माँ भी स्वीकार नहीं करेगी..
बीत गए दिन, प्यार के पल- छिन
सपना बनी ये रातें
भूल गए वो, तू भी भुला दे
प्यार की वो मुलाकातें
सब दूर आंधेरा
मुसाफिर जाएगा कहाँ...
राजू गाइड (देव साहब) उसी उधेड़बुन में अपनी यादों की पूंजी लिए, एक छोटा सा बैग जिसमें उसके जीवन की यादें तस्वीरें हैं, जो फट चुके बैग से गिर कर पानी में बह पडी हैं. जो खुद चलते - भटकते हुए भी दोराहे पर खड़ा है.. की जाऊँ या लौट जाऊँ..
कोई भी तेरी, राह न देखे
नैन बिछाए न कोई
दर्द से तेरे, कोई ना तड़पा
आँख किसी की ना रोई
कहे किसको तू मेरा
मुसाफिर जाएगा कहाँ…
स्मार्ट राजू गाइड (देव साहब) की बढ़ी हुई दाढ़ी बिगड़ चुका हुलिया, अब जीवन की वास्तविकता से परिचय होता है. फट चुका लिबास, चलने में लड़खड़ाते पैर, फट चुके जूते बेबसी का एहसास कराते हैं... जो राजू पूरे शहर पर मंडराता था, आज चल भी नहीं पा रहा...
तूने तो सबको, राह बताई
तू अपनी मंज़िल क्यूँ भूला
सुलझा के राजा, औरों की उलझन
क्यूँ कच्चे धागों में झूला
क्यूँ नाचे सपेरा
मुसाफिर जाएगा कहाँ...
राजू गाइड (देव साहब) सोचता है कि मैं खुद लोगों को रास्ते बताता था. आज खुद ही रास्ता नहीं देख पा रहा.. जाऊँ कहाँ.. कहाँ अपनी दुनिया बसाऊं.. जहां मुझे इज्ज़त की रोटी मिले, जहां लोग मुझे हिकारत से न देखें.. उससे भी आगे बात पहुंच गई... जहां राजू गाइड (देव साहब) जीने - मरने के मुहाने पर. खड़ा है .. शायद बहुत दूर निकल आया है. जहां से लौटने का रास्ता ही नहीं है.
कहते हैं ज्ञानी, दुनिया है फानी
पानी पे लिखी लिखाई
है सबकी देखी, है सबकी जानी
हाथ किसी के ना आनी
कुछ तेरा ना मेरा
मुसाफिर जाएगा कहाँ…
आख़िरकार राजू गाइड (देव साहब) को वास्तविकता का पता चल जाता है, कि मेरा दुनिया में आने का मकसद क्या है.. ज़िन्दगी में इंसान का अर्थपूर्ण होते हुए मर जाना भी सार्थकता सिद्ध करता है... उधेड़बुन में राजू गाइड (देव साहब) का सफ़र अब ज़िन्दगी के असल मुकाम पर ले आया है..
यह मार्मिक गीत बहुत ही भावपूर्ण फ़िल्माया गया है. विजय आनन्द (गोल्डी) गीत फिल्मांकन के मामले में भारत के सबसे टैलेंटेड फ़िल्मकार रहे हैं.. वो गीत फिल्मांकन की बागडोर अपने हाथ में ही रखते थे... इस गीत में बर्मन दादा की आवाज़ किसी दूसरी दुनिया में ले जाती है.. वहीँ देव साहब की अदाकारी अपने आप में संजीदा अभिनय का स्मारक है. गाइड फिल्म नहीं देखा तो क्या देखा... फिर ज़िन्दगी में कुछ अधूरा है.
दिलीप कुमार
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