चे ग्वेरा ❤️

चे ग्वेरा ❤️

चे ग्वेरा पूरी दुनिया में आज भी लोकप्रिय हैं, चे की लोकप्रियता का आलम यह है कि शायद ही कोई होगा जो उन्हें जानता न हो! अगर उन्हें जानता नहीं होगा तो कहीं न कहीं देखा ज़रूर होगा. ख़ासकर युवाओं में उनकी लोकप्रियता देखते ही बनती है. हाथ में बड़ा- सा सिगार, बिखरे हुए बाल, सिर पर टोपी, शरीर में वर्दी-- चे ग्वेरा का यह हुलिया युवा क्रांतिकारियों को लुभाता है. जिस तरह से वे जिए और जैसे मरे उसने उन्हें पूरी दुनिया में 'सत्ताविरोधी संघर्ष' का प्रतीक बना दिया है. कुछ लोग दुनिया में बहुत सीमित दिनों के लिए आते हैं, लेकिन अपनी करिश्माई जीवन यात्रा से पूरी दुनिया को रोशन कर जाते हैं... चे ग्वेरा भी उन्हीं क्रांतिकारियों में शुमार हैं, जिनके न होने पर शायद दुनिया अधूरी होती.. चे ग्वेरा के गुज़र जाने के कई दशकों बाद भी पूंजीपति वर्ग के लिए खौफ का दूसरा नाम हैं.एक दौर था, जब अमेरिका चे ग्वेरा को अपना दुश्मन मानताा था, लेकिन आज चे ग्वेरा अमेरिका सहित दुनिया भर में वामपंथ विचारधारा के लोगों के लिए रोल मॉडल बने हुए हैं.. चे ग्वेरा मरने से पहले अपने बच्चे को क्या हिदायत दे कर गए, उनके शब्दों से समझा जा सकता है, कि वो कितनेे जियाले इंसान थे... 

बोलिविया में मारे जाने से पहले उन्होंने 1966 में अपने बच्चों को एक खत लिखा, "जब कभी किसी भी समय तुम इस पत्र को पढ़ोगे तो उसका मतलब होगा कि मैं तुम लोगों के पास नहीं हूं. फिर भी तुम्हारा पिता एक ऐसा व्यक्ति था, जिसने सरोकार की विचारधारा से कभी समझोता नहीं किया. जिसने अपने उसूलों पर ज़िन्दगी जिया. मैं मर जाने के बाद भी चाहूँगा कि तुम बड़े होकर क्रांतिकारी बनना. जहां भी अन्याय देखना उसके खिलाफ़ आवाज़ बुलंद करना, केवल आवाज़ ही नहीं... क्रांति की ज़रूरत पड़े तो वो भी करना उसूलों से समझौता मत करना. क्योंकि यह थोड़ा मुश्किल होता है. मेहनत के साथ पढ़ो और तकनीक पर महारत हासिल करो. शिक्षित होना बहुत आवश्यक है. बिना अधिकारों की समझ के क्रांति नहीं होती. याद रखो सबसे महत्वपूर्ण है क्रांति और उसमें किसी का भी अकेले कोई महत्व नहीं है. दुनिया में जहां भी अन्याय हो रहा हो, उसके खिलाफ पूरी तरह सचेत रहो. कभी भी डरना नहीं, मैंने उन लोगों की भी कब्र देखी हैं, जो कहते थे, हम घर से नहीं निकल सकते कहीं कुछ हो न जाए.. ऐसी सीख अपने बच्चों को लिखकर रख जाने वाले चे ग्वेरा आज क्यूबा, अर्जेंटीना, अमेरिका, भारत सहित पूरी दुनिया में विद्रोहियों के लिए आज भी अपने विचारो के जरिए, अपनी करिश्माई शख्सियत के कारण जिवित हैं. 
चे ग्वेरा अनोखे इंसान बहुत शिक्षित पेशे से डॉक्टर थे. चे ग्वेरा चाहते तो अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स के कॉलेज में डॉक्टर बनने के बाद आराम की ज़िंदगी बसर कर सकते थे. लेखक भी थे, उनके पास अपना एक दृष्टिकोण था. 33 साल की उम्र में क्यूबा में उद्योग मंत्री बने थे. फिर लातिनी अमरीका में क्रांति का संदेश पहुँचाने के लिए ये पद छोड़ जंगल की ओर निकल गए.. जब कोई महल त्याग कर जंगल की ओर प्रस्थान करता है तो वो या तो बुद्ध बन जाता है, या चे ग्वेरा बन जाता है.. आज एक महान क्रांतिकारी के रूप में याद आते हैं. अमेरिका की बढ़ती ताक़त को पचास और साठ के दशक में चुनौती देने वाले अर्नेस्तो चे ग्वेरा अर्जेंटीना में पैदा हुए थे. अर्जेंटीना में पैदा हुए, क्यूबा में मंत्री बने, जैसे गांधी जी महात्मा बनने से पहले अफ्रीका में लोकप्रिय थे. अपने आसपास ग़रीबी एकाधिकार, पूंजीवाद, उपनिवेशवाद, और शोषण देखकर चे का झुकाव मार्क्सवाद की तरफ़ हो गया और बहुत जल्द ही इस विचारशील युवक को लगा कि दक्षिणी अमरीकी महाद्वीप की समस्याओं से निपटने का सबसे कारगर उपाय सशस्त्र आंदोलन ही एकमात्र रास्ता है. 
हमेशा से ही महान ऐक्टिविस्टों ने यात्रा को अपना कारगर हथियार बनाया है. चे ग्वेरा की ज़िन्दगी में यात्राओं का अहम योगदान रहा है. चे ग्वेरा की असल ज़िन्दगी वहां से शुरू होती है, जब उन्होंने अपने दोस्त, अल्बेर्तो ग्रेनादो के साथ दक्षिण अमेरिका को जानने के लिए तकरीबन दस हज़ार किलोमीटर की यात्रा की. तब उनकी उम्र 23 साल थी. मोटरसाइकल पर की गई यही यात्रा उनकी ज़िन्दगी का अहम मरहला सिद्ध हुआ. जिसने उन्हें हमेशा के लिए बदल दिया. इस दौरान उन्होंने दक्षिण अमेरिका के लोगों को जिंदा रहने के लिए विषम परिस्थितियों से जूझते हुए देखा. उन्होंने देखा कि कैसे पूंजीवाद ने लोगों को अपने अस्तित्व से अलग कर दिया था. कैसे काम करने वाले मजदूरों का शोषण किया जा रहा था. गरीबी, अशिक्षा, असमानता को देखने के बाद चे ग्वेरा के सामने दुनिया का असल चित्र आया तो उन्हें अपने डॉ. होने पर पछतावा होने लगा था. की भला मैं डॉ. होकर भी लोगों की मदद नहीं कर पा रहा तो फिर मेरा रास्ता दूसरी तरफ जाता है. 
ग्वाटेमाला में सरकार के तख्तापलट ने चे के मन में क्रांति की  आग लगा दी थी. शुरुआत में वो थोड़ा लाचार थे, क्योंकि वो उतने शक्तिशाली नहीं थे. अंततः उन्होंने मैक्सिको में एक हस्पताल में डॉ. बनकर नौकरी करने लगे थे. तब ही चे ग्वेरा की मुलाकात क्यूबा से निर्वासित नेता फिदेल कास्त्रो और उनके भाई राउल कास्त्रो से हुई. चे ग्वेरा 27 साल के थे . इस मुलाकात ने चे ग्वेरा की ज़िन्दगी किस ओर जा रही है, तय हो चुका था. उन्होंने तय कर लिया था कि अब उनका लक्ष्य क्यूबा की अमेरिका समर्थित तानाशाही सरकार को हटाना है. इसके बाद वे फिदेल कास्त्रो के साथ मिलकर क्यूबा की क्रांति अगुवाई करने वाले नेता सिद्ध हुए. चे ग्वेरा क्यूबा की क्रांति के नायक फिदेल कास्त्रो के सबसे भरोसेमंद साथियों में से एक थे. फिदेल व चे ग्वेरा ने सिर्फ 100 गोरिल्ला लड़ाकों के साथ मिलकर अमेरिका समर्थित तानाशाह बतिस्ता की सत्ता को सन 1959 में उखाड़ फेंका था. 31 वर्ष की उम्र में चे को फिदेल कास्त्रो ने राष्ट्रीय बैंक का अध्यक्ष और देश का उद्योग मंत्री बना दिया, लेकिन घूमने - फिरने वाले चे ग्वेरा एक जगह रम कैसे सकते थे. स्वभाव से क्रांतिकारी होने के कारण वह दूसरे देशों में ज़मीनी स्तर पर जाकर पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ़ आंदोलन को और मजबूत करने का काम करने लगे. यही तो उनकी ज़िन्दगी में मकसद था. 

चे ग्वेरा ने 1959 में क्यूबा के मंत्री के रूप में भारत की यात्रा पर आए थे, उन्होंने पण्डित जवाहर लाल नेहरू जी से मुलाकात की थी. पण्डित नेहरू जी के प्रति पूरी दुनिया में एक जिज्ञासा थी. चे ग्वेरा पण्डित नेहरू जी से काफी प्रभावित हुए थे. भारत से लौट कर अपने मित्र फ़िदेल कास्त्रो को एक लिखित रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें उन्होंने लिखा: 'हमें पण्डित नेहरू जी ने बेशकीमती सुझाव दिए... भारत- यात्रा से हमें की ज्ञानवर्धक बातेँ सीखने को मिलीं. सबसे महत्वपूर्ण बात हमने यह जानी कि एक देश का आर्थिक विकास उसके तकनीकि विकास पर निर्भर करता है, और इसके लिए वैज्ञानिक शोध संस्थानों का निर्माण बहुत जरूरी है. मुख्य रूप से मेडिकल, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान और कृषि विज्ञान के क्षेत्र में" पण्डित नेहरू जी की यह सीख मुझे बहुत प्रभावित कर रही है. भारत एक राष्ट्र के रूप में उम्दा है, जिसे पहला प्रधानमंत्री पण्डित नेहरू के रूप में मिला". चे ग्वेरा ने भारत यात्रा को सफल एवं उम्दा अनुभव बताया था. चे ग्वेरा की बेटी भी भारत की यात्रा पर आती रहीं हैं... 

उस दौर में भी उनकी बहादुरी, उसूलों के प्रति प्रतिबद्धता पूर्वक जीवन जीने वाले चे ग्वेरा विद्रोहियों एवं उनके साथियों में खासे लोकप्रिय होने के साथ ही आदर के पात्र बन गए थे. मूलतः देखा जाए तो चे का मतलब भाई, होता है, यही कारण था कि 'अर्नेस्टो राफेल ग्वेरा डी सेरना' चे ग्वेरा बल्कि उनका नाम चे ही लोकप्रिय हुआ..सभी उन्हें चे कहकर ही पुकारते थे.. आज भी पूरी दुनिया उन्हें चे कहकर पुकारती है. 

 चे ग्वेरा आसान ज़िन्दगी जीने के आदी नहीं थे, उनकी ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा स्थायी एडवेंचर ही था.. ज़िन्दगी से ज्यादा मोह नहीं, महलों वाली जिंदगी छोड़कर जंगलो में अय्यारी, के साथ पूरी दुनिया में फैली असमानता के खिलाफ लड़ने के जुनून ने उन्हें दुनिया में आज तक पैदा हुए कुछ अमर व्यक्तित्व में शुमार करा दिया. यही कारण था, कई देशों की आजादी में प्रमुख भूमिका निभाने के बाद भी जियाले चे ग्वेरा को चुपचाप आराम करना स्वीकार नहीं था.. जिस चे ग्वेरा की पहिचान उनकी दाढ़ी उनके सिर के बिखरे बाल उनके लिए आर्कषण का केंद्र थे, उन्होंने बोलिविया जाने से पहले ही एक पल में मुड़ा लिया.. ऐसा भी वो ही कर सकते थे. 1966 में चे ग्वेरा बोलिविया पहुंच गए. उनका उद्देश्य गुरिल्ला संगठन खड़ा करना था, उन्होंने कर भी लिया.. वहीँ अमेरिका कभी भी चे ग्वेरा की नीतियों को सफल होते नहीं देखना चाहता था, अमेरिका ने पहले से ही वहाँ गुपचुप डेरा डाला हुआ था.. कई लड़ाइयां जीतने वाले चे ग्वेरा बोलिविया में पराजित हो गए. बोलिविया एवं अमेरिका ने संयुक्त रूप से चे ग्वेरा को पकड़ लिया, और बोलिविया के धूर्त तानाशाह ने उन्हें फांसी की सजा मुकर्रर की, लेकिन मौत की सजा उनकी दिलेरी का प्रसाद थी. सजा सुनाए जाने के बाद एक सैनिक ने तंज कसते हुए पूछा कि क्या तुम सोचते हो कि लोग तुम्हें हमेशा याद रखेंगे?' चे ने जवाब दिया 'नहीं, मैं बस क्रांति की अमरता के बारे में सोचता हूं.' कुछ देर बाद सार्जेंट टेरेन वहां पहुंचा. उसको देखते ही चे की आंखों में आक्रोश झलकने लगा. चे जोर से चिल्लाए —'मैं जानता हूं, तू मुझे मारने आया है. गोली चला, कायर!' उन्होंने बोलेविया के सैनिकों को सुनाते हुए आगे कहा—'यह समझ लो कि तुम सिर्फ एक आदमी को मारने जा रहे हो, पर उसके विचारों को नहीं मार सकते….क्रांति अमर है.'... उस धूर्त ने चे ग्वेरा को भून दिया था.... केवल 39 साल की उम्र में दुनिया रुख़सत कर जाने वाले चे ग्वेरा की मौत की खबर सुनकर फिदेल कास्त्रो ने कहा था "हमसे जब पूछा जाएगा कि कैसा आदमी बनना हैं तो हमारा जवाब चे ग्वेरा होना चाहिए.. क्योंकि चे ग्वेरा दोस्तों का दोस्त.. समाज के लिए कुछ करने का ज़ज्बा, निरंकुशता को घुटनों के बल बिठा देने की दिलेरी... उन्हें चे ग्वेरा बनाती है.. उन्हें मारने के बाद अज्ञात जगह सुपुर्द एक खाक कर दिया गया था... क्या अमेरिका एवं बोलिविया उन्हें खत्म कर चुके हैं?? यह सवाल होना चाहिए, जो अमेरिका चे ग्वेरा को खत्म करना चाहता था, वही अमेरिका देख रहा है आज भी चे ग्वेरा के विचार पूरी दुनिया में जिवित हैं. उनका प्रकाश पुंज कभी मद्धम नहीं होगा.. आज भी आधे से ज्यादा अमेरिका उन्हें भगवान की तरह पूजता है. आज भी पूरी दुनिया में निरंकुशता के सामने विचार बन कर खड़े हैं... जब तक यह कायनात रहेगी, तब तक चे ग्वेरा अमर रहेंगे.. जन्म जयंति पर चे को लाल सलाम ❤️

दिलीप कुमार

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