"सलामत रहे दोस्ताना हमारा रफी साहब एवं किशोर दा"
'वो दौर सचमुच स्वर्णिम था'
किशोर दा, रफी साहब दोनों प्रतिद्वंद्वी नहीं थे. जब किशोर दा ने गाना शुरू किया था, तब तक रफी साहब महान बन चुके थे.. एक बार यश चोपड़ा ने रफी साहब का अपमान कर दिया था, तो किशोर दा ने सभी के सामने यश चोपड़ा को फटकार लगाते हुए कहा था "हम सब रफी साहब का नाम चप्पल उतारकर लेते हैं, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई उनके साथ ऐसे करने की जब कि भगवान जैसे रफी साहब के एहसान तुम कभी नहीं उतार सकते" .. उस एहसान का मतलब था, यश चोपड़ा को उनके बड़े भाई ने घर से निकाल दिया था, जब यश चोपड़ा की पत्नी गर्भवती थीं, तो यश चोपड़ा को बिना किसी काग़ज़ी कार्यवाही, बिना पैसे एक दशक के लिए अपना घर दे दिया था.
यूँ तो आकाश, ईश्वर, नदी, आदि का कोई अपमान नहीं कर सकता, क्योंकि रफी साहब भी इससे परे थे. मैंने आजतक किसी को रफी साहब के लिए नकारात्मक बोलते हुए सुना नहीं है. एक बार यश चोपड़ा अपनी गर्भवती पत्नी के साथ अपने घर से निकाल दिए गए थे. अब उनके पास कोई ठिकाना नहीं था, रहने के लिए, तब यश चोपड़ा केवल बी आर चोपड़ा के भाई के रूप में ही जाने जाते थे, उनकी कोई पहिचान नहीं थी. उनको रफी साहब की दरियादिली का अंदाज़ा था. वो रफी साहब के घर पहुंचे अपना दुःख सुनाया, रफी साहब कहते हैं "पानी पीकर आता हूं". सुनकर यश चोपड़ा को दुख हुआ, कि ये मेरी मदद क्या करेंगे मेरी पूरी बात तक नहीं सुन रहे, थोड़ी देर बाद रफी साहब हाथ में चाबी लेकर आए, कहा मेरे पाली हिल्स बंगले में रह सकते हैं. यश चोपड़ा चले गए आठ साल तक रहे, रफी साहब ने कोई रेंट नहीं लिया. कोई लिखा - पढ़ी नहीं हुई. इन आठ सालों में यश चोपड़ा बहुत बड़े नाम बनकर उभरे थे.
यश चोपड़ा फिल्म 'दूसरा आदमी' बना रहे थे, गानों की रिकॉर्डिंग महबूब स्टुडियो में हो रही थी, इसमे संगीतकार राजेश रोशन थे. इस फिल्म में एक गीत रफी साहब, किशोर दा, लता जी तीनों एक ही कोलैब गीत गाने वाले थे. तीनों सफल रिकॉर्डिंग करते हुए बाहर निकले गाने की रिकॉर्डिंग के बाद निर्माता गायकों को गुलदस्ता देकर सम्मान करते हैं. इसी रस्म के लिए तीनों खड़े हुए थे, यश चोपड़ा ने दो गुलदस्ते क्यों मंगवाए वही बता सकते थे. सबसे पहले रफी साहब खड़े हुए थे. कायदे से सबसे पहले रफी साहब को गुलदस्ता देना चाहिए था, लेकिन यश चोपड़ा ने पहले क्या बाद में भी गुलदस्ता नहीं दिया. लता जी ने यश चोपड़ा से पूछा कि आपने महान रफी साहब के साथ ऐसे अभद्रता क्यों की, जबकि रफी साहब के साथ कोई भी ऐसे नहीं कर सकता. रफ़ी साहब बहुत ही सम्मानीय इंसान हैं. यह सुनते हुए रफी साहब थोड़ा दुःखी मन से स्टुडियो से बिना कुछ बोले ही चले गए. रफ़ी साहब ने किशोर दा, लता जी से कहा कि कलाकार का कोई अपमान नहीं कर सकता. क्योंकि कलाकार मान-सम्मान से परे होते हैं. हालाँकि उनके चेहरे पर दुख झलक रहा था. मुझे कभी यश चोपड़ा मिलते तो जरूर उनसे पूछता कि आपने रफी साहब के हुज़ूर में गुस्ताखी क्यों की. हालाँकि इसके पीछे का उद्देश्य भाई बी आर चोपड़ा का पक्ष लेना था, क्योंकि बी आर चोपड़ा चाहते थे, कि रफी साहब केवल उनके लिए गाएं, उन्होंने बंधुआ मजदूर बनने से इंकार कर दिया था... फिर बी आर चोपड़ा ने रफी साहब का बहिष्कार कर दिया था. रफ़ी साहब की जगह महेंद्र कपूर को बढावा दिया, लेकिन महेंद्र कपूर रफी साहब के शिष्य थे, उन्होंने भी मना कर दिया , कि आप मेरे गुरु का का बहिष्कार करते हैं मैं आपके लिए क्यों गाऊँ हालाँकि रफी साहब ने महेंद्र कपूर समझाया कि अपना कॅरियर बनाओ... खुश रहो.
जगजीत सिंह जी ने रफी साहब के लिए कठोर शब्दों का चयन किया था, तो किशोर दा ने उनको जवाब दिया था... जगजीत सिंह जी शुरू शुरू में हिन्दी सिनेमा में प्रयास कर रहे थे, लेकिन सफ़लता नहीं मिल पा रही थी, तो उन्होंने स्ट्रगल के दौर में रफ़ी साहब के लिए ऐसा बोल दिया था जो नहीं बोलना चाहिए था...तो किशोर दा ने फटकार लगाई थी. बाद में उन्होंने मुआफी मांगी थी... हालाँकि रफी साहब ही उनके आदर्श थे.. इसलिए यह बात ज्यादा जिक्र लायक नहीं है.. महान जगजीत जी ने कहा था "वो अनुचित शब्द महान रफी साहब के लिए निकले वो सिर्फ मेरे संघर्ष के दिनों की कुंठा थी.. रफ़ी साहब जगजीत जी से बड़े अच्छे से मिलते थे, कभी उन्होंने जगजीत सिंह जी को आभास नहीं होने दिया..रफ़ी साहब बहुत विनम्र, शालीन इंसान थे, वहीँ किशोर दा थोड़ा चंचल स्वभाव के थे.
'रफ़ी साहब अनोखे गायक थे, जिन्होंने दूसरे प्ले बैक सिंगर को अपनी आवाज़ दी. रफ़ी साहब ने लगभग ग्यारह गीतों में किशोर कुमार के लिए गाने गाए. 70 के दशक में किशोर दा आमतौर से एक दिन में दो या तीन गाने रिकॉर्ड करते थे, लेकिन जिस दिन उन्हें' रफ़ी साहब' के साथ गाना होता था वो पूरा दिन उस गाने के लिए रखते थे. उनको पता था कि रफ़ी 'परफ़ेक्शनिस्ट' हैं और उन्हें अंतिम रिकॉर्डिंग से पहले घंटों अभ्यास करना पड़ेगा. रिकॉर्डिंग के दौरान 'किशोर दा' चुटकुले सुनाते रहते थे, 'रफ़ी साहब' आनंद लेते थे. एक शो के दौरान जिसमें रफ़ी और किशोर दोनों भाग ले रहे थे, किसी प्रसंशक ने 'किशोर दा' से ऑटोग्राफ़ देने का अनुरोध किया. किशोर ने रफ़ी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, 'अरे मेरे से क्यों ऑटोग्राफ़ ले रहे हो बंधु, संगीत तो उधर है.' उन शो के दौरान किशोर रफ़ी के कुछ गाने गाते थे और बहुत आदरपूर्वक कहते थे, 'मेरे पास रफ़ी साहब जैसी आवाज़ तो नहीं है पर फिर भी मैं उनके हुज़ूर में कुछ गाना चाहता हूं. हमेशा रफी साहब एवं' किशोर दा' दोनों में तुलना होती है, जिसका 'किशोर दा खंडन करते हुए कहते थे "रफी साहब' सिंगिग में मुझसे सीनियर हैं, मैं शुरू में अभिनय पर केंद्रित था, मैंने बहुत बाद में संगीत को अपना कॅरियर बनाया, तब तक रफी साहब महान सिंगर बन चुके थे. मैं बेपरवाह सिंगर हूं, लेकिन रफ़ी साहब समर्पित सिंगर थे. हम दोनों की तुलना निराधार है. मेरा भी व्यक्तिगत रूप से मानना है कि दोनों की तुलना नहीं करना चाहिए. दोनों महानतम रहे हैं
आपातकाल के दौरान 1975 में किशोर दा ने इंदिरा गांधी की मुखालफत की थी, जिससे किशोर दा के गीत रेडियो और टी.वी.पर प्रसारित करने बंद कर दिए थे. लेकिन,उनके गीत कुछ ही समय बाद फिर से प्रसारित होने लगे थे..किशोर दा अधिकारियों को धन्यवाद देने के लिये आल इंडिया रेडियो के नई दिल्ली स्थित कार्यालय गये तो उन्हें बताया गया कि प्रधानमन्त्री कार्यालय के आदेशानुसार ही उनके गीतों का पुन:प्रसारण संभव हुआ है. किशोर दा जब प्रधानमन्त्री कार्यालय गये तो उन्हें पता चला कि रफ़ी साहब वहां आये थे और उन्होंने ही श्रीमती इन्दिरा गांधी से यह अनुरोध किया था कि किशोर बहुत अच्छे इंसान एवं उम्दा कलाकार हैं. उनके गीतों का पुनः प्रसारण शुरू करने की इजाजत दीजिए. किशोर दा रफ़ी साहब से मिले तो रफ़ी साहब ने इस घटना की पुष्टि तो की लेकिन किशोर दा को कसम देकर वायदा लिया कि उनके(रफ़ी साहब के) जीते जी वे (किशोर दा) यह घटना का जिक्र किसी से न करें. रफ़ी साहब के निधन पर किशोर दा ने "रफ़ी साहब" के पैरों को पकड़ कर रोते हुए यह घटना बयान की थी कि आज उनकी क़सम पूरी हो गई है इसलिये मैं यह बात बता रहा हूं. इसके बाद बाद किशोर दा के ह्रदय में रफ़ी साहब के लिए इज़्ज़त और बढ़ गई और वे रफ़ी साहब को अपने बड़ो के समान इज्ज़त देते थे... एक बार किशोर दा के अनुरोध पर रफी साहब ने उनके संगीत निर्देशन में गाया था, क्योंकि किशोर दा की दिली इच्छा थी.
ख़ैर ऐसे ही देव साहब, दिलीप साहब, राज कपूर साहब त्रिमूर्ति के दोस्ताना संबन्धों पर लिखा था, तो लोगों का हाजमा खराब हो गया था..
दिलीप कुमार
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