"समय अपना नायक चुनता है "
"समय अपना नायक चुनता है"
आज अगर विरुद्ध नहीं खड़े हुए तो 2029 में खड़े होने लायक रह नहीं जाएंगे, विपक्ष को बखूबी समझ आ गया गया है. जो भी होता है अच्छे के लिए होता है, लोकतंत्र कोई बना - बनाया प्रोडक्ट नहीं है, इसको गढ़ना पड़ता है. 2014-से 2019 तक देश में जो भी घटित हुआ है, कोई भी नागरिक अधिकारों को जानने वाला इंकार नहीं कर सकता कि देश में तानाशाही चरम पर है. एनडीए सरकार के आने के बाद हम जैसे नागरिक अधिकारों को जानने वाले लोगों में इसकी कीमत का अंदाज़ा हुआ है कि दरअसल सबसे बहुमूल्य हमारी आजादी है. इससे पहले कोई गंभीरता से लेता नहीं था. 2014 - 15 में जो मशीनरी, मोदी की ब्रांडिंग करने में लगा था, उसका परिणाम सरकार के दूसरे टर्म में देखा जा सकता है. उस ब्रांडिंग का मतलब था, पीएम एवं सरकार की आलोचना ही देशद्रोह होता है. तरह तरह से देश में परिभाषाएं बदली गईं. पीएम ही देश हैं जनता के दिमाग में डाला गया. लोकतंत्र की असलियत यह होती है कि विपक्ष देश हो सकता है, ब्यूरोक्रेसी, न्यायपालिका, मीडिया, एवं जनता देश हो सकती है, लेकिन सरकार कभी भी देश नहीं होती. ख़ैर हमारा देश इस सब से अलग राह चल पड़ा है. आज जरूरत है एक नायक की जिसे जनता खुद ब खुद चुन लेगी.
2024 में विपक्ष का नेता कौन? यह बहस लगभग दस साल से चली आ रही थी. राहुल की सदस्यता खत्म होने के साथ ही यह मुद्दा खत्म हो गया है. आज पूरा विपक्ष राहुल के पीछे खड़ा हो गया है. उसको पता है कि इस सरकार से टकराने का ज़ज्बा केवल और केवल राहुल गांधी में हैं. आज के दौर में छोटे से छोटे क्षत्रपों के पास अपना - अपना वोट वर्ग है, सभी की अपने - अपने क्षेत्रो में पकड़ है. आपस में लड़ने के बाद धर्मांध जनता का खूब ध्रुवीकरण किया जाता है. विपक्ष में कमी है तो सिर्फ एकता की..ताकतवर सत्ता को मिलकर ही उखाड़ा जा सकता है. जो सोशल इंजीनियरिंग पर देश को हाँक रही है है. देश की पूरी मशीनरी,का दुरुपयोग करती सत्ता जब मदमस्त हो कर झूम रही थी, तब एक नायक खड़ा हुआ, वो नायक पहले भी था, लेकिन समय व्यक्ति को अपनी कसौटी पर कसता है. हमारा देश समय - समय पर नायक चुनता है, मौजूदा प्रधान मंत्री को उस दौर में चुना गया था, उनका अतीत क्या है किसी से छिपा नहीं है. दुःखद उन्होंने जनता को अंधेरे में रखकर खूब टॉर्च बेची है.
राहुल गांधी ने देश को उम्मीदें दी हैं, कि वो इस दौर में पूरी सत्ता को चुनौती दे सकते हैं, चुनौती देने का मतलब है खोने पाने का कोई डर न हो... राहुल ने कह दिया है, कि मैं संसद में रहूं, या न रहूं, मैं अपने हिस्से का संघर्ष कर रहा हूं, और करता रहूँगा....जेल में डाल दो या मार डालो या फांसी दे दीजिए, एक कहावत है जिसके अंदर डर खत्म हो जाता है, उसको हराना मुश्किल होता है. बंगला, सांसदी छिन जाने के बाद भी राहुल के सवाल यही है कि अडानी-मोदी का रिश्ता क्या?? इतना सुनने के बाद अगर मदमस्त सत्ता की नींद उड़ी है, तो लाज़िमी है कि कुकर्मों का घड़ा भर गया है. पूरा विपक्ष राहुल के पीछे खड़ा हो गया है. देश में फिजा बदली तो है, क्योंकि अब तक पूरा विपक्ष खामोश था, अब बोलने लगा है, अचानक से पूरा विपक्ष लामबंद होकर सीधे प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती दे रहा है, अब तक विपक्ष जब भी मोदी को टार्गेट करता था, उसको मुँह की खानी पड़ी है, लेकिन राहुल गांधी ने मोडानी के मुद्दे पर सरकार को बैकफुट पर लाकर खड़ा कर दिया है. जिसकी बानगी कर्नाटक चुनाव में देखने को मिलेगी. जहां बीजेपी को खुद समझ आ गया है, कि कर्नाटक तो हाथ से गया. कर्नाटक के कोलार में राहुल ने जो भाषण दिया उसके कारण सूरत कोर्ट ने सजा सुनाई. उससे साफ समझा जा सकता है, कि मामला कितना घृणित है. अब राहुल कोलार में इस मुद्दे को उठाने वाले हैं. भारत जोड़ों यात्रा का सबसे ज्यादा समर्थन कर्नाटक में ही मिला था.
कानून के जानकार कह रहे हैं, कि राहुल की सज़ा का मामला सुप्रीम कोर्ट में एक घण्टे भी नहीं टिकेगा. तो अब राहुल जेल जाएंगे, यह तय हो चुका है. लगभग आठ दिन जेल में बिताने के बाद बाहर आएंगे और पूर्व से पश्चिम की ओर भारत जोड़ों यात्रा में निकल चुके होंगे.. यह उम्मीद भी जताई जा रही है. जेल से निकलते ही देश में यह संदेश जाना चाहिए कि संसद में बलात्कार, आतंकवाद, फिरौती, कत्ल, आदि के आरोपी संसद में हैं और देश के पैसे से आराम भोग रहे हैं, तो संदेश साफ है कि राहुल गांधी ने ऐसा क्या कर दिया, कि सांसद से पूर्व सांसद हो गए, और जेल जाना पड़ा.. फिर ज्यादा कुछ कहने के लिए बचता नहीं है. राहुल को रास्ते से हटाने के लिए सत्ता ने उल्टी चाल चली, और वही चाल सरकार के गले की हड्डी बन चुकी है. यूँ ही नहीं गृहमंत्री अमित शाह राहुल को कोर्ट में अपील के लिए सुझाव दे रहे हैं कि मुझे भी तो झूठा फंसाया गया था, आखिरकार मैं बच गया, क्योंकि देश में कानून का राज है, राहुल गांधी को भी ऊपरी कोर्ट में अपील करना चाहिए. जिसको यह समझ नहीं आता, उसी कॉम को अंधभक्त कहा गया है. सरकार का दांव उल्टा पड़ चुका है, स्पष्ट समझ आता है. विपक्ष राहुल की शख्सियत को भी जानता है, कि यह व्यक्ति किसी भी पद से ज्यादा लोकप्रिय हो चुका है. राहुल गांधी भी कह चुके हैं, कि मुझे पीएम बनने से ज्यादा देश घूमने में मजा आता है, हो सकता है जनता मुझे पीएम बना दे, और मैं किसी और को सौंप कर भारत यात्रा पर निकल जाऊँ.
मौजूदा सत्ता उखड़ने के बाद पीएम कौन बनेगा? सत्ता उखाड़ने का माद्दा हो भी पाएगा यह भी बहुत मुश्किल है! लेकिन राहुल गांधी के पीछे खड़ा समूचा विपक्ष आवाज़ दे रहा है, राहुल हम आपके साथ हैं. असल में राहुल को विपक्ष की जरूरत नहीं है. अब विपक्ष को इंकलाबी , निडर, बेखौफ अपने नेता राहुल गांधी की जरूरत है. अब सवाल सीधे पीएम से होंगे, अब सीधे पीएम को घेरा जाएगा...जो व्यक्ति सभी से आगे चलता था, अब जवाब उसी को देना पड़ेगा. आम तौर पर मोदी ने आज भी नेहरू जिम्मेदार के अलावा कोई जवाब नहीं दिया. अब बिना जवाब दिए सदन नहीं चलेगा. कांग्रेस साफ़ कर चुकी है, कि सामूहिक इस्तीफा देना पड़ा तो दे देंगे. राहुल गांधी के साथ पूरी की पूरी कांग्रेस जेल जाने को तैयार है . आज के दौर में सरकार के लिए सबसे बड़ा खौफ राहुल गांधी ही हैं. आज पूरे के पूरे सिस्टम पर आरोप है. जो मोदी सवाल करते थे, अब सवालों का जवाब दे नहीं पा रहे. यह भी स्पष्ट हो चुका है कि यह पहली सरकार है, जो जवाब न देना पड़े इसके लिए सदन नहीं चलने दे रही. यह बदलाव ही सरकार की नींद उड़ा रहा है. राहुल को किसी पद, घर की आवश्यकता नहीं है. राहुल की सांसदी जाना सरकार की अंतिम मनमानी हो सकती है. पूरे देश सहित दुनिया के लिए दिल में मुहब्बत रखने वाले राहुल दुनिया के सबसे लविंग पर्सन हैं, लेकिन यही मुस्कराता हुआ प्यारा राहुल पूरे सत्ता के लिए खौफ का दूसरा नाम बन गया है. राहुल जेल से महानायक बनकर निकलेंगे. क्योंकि समय अपना नायक चुनता है, उसने अपना नायक राहुल चुन लिया है.
दिलीप कुमार
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