याहू
एक सुखद एहसास #याहू,
सुबोध मुखर्जी द्वारा निर्देशित शम्मी कपूर, सायरा बानो, ललिता पवार अभिनीत 'जंगली' फिल्म जिसने हिंदी सिनेमा के खुलेपन और बाहर के रोमांस का मार्ग खोला. यह फिल्म 1961 की सबसे बड़ी हिट थी. इस फिल्म की सफलता मील का पत्थर साबित हुई. जावेद अख्तर ने कहा “यह कहा जाता था भारत में दो टकसाल हैं, जहां पैसा बनाया जाता है. एक का स्वामित्व भारत सरकार के पास है, और दूसरा सुबोध मुखर्जी के पास है.
जो जंगली के निर्माता-निर्देशक हैं. जंगली फिल्म इतनी बड़ी हिट हुई थी. जब शम्मी कपूर तुमसा नहीं देखा और दिल देके देखो, जंगली के साथ पहले ही स्टार बन चुके थे. उसे सफलता के एक बिल्कुल अलग क्षेत्र में पहुँचाया. जब जब फूल खिले, आराधना, कश्मीर की कली, मेरे सनम, हमराज़, आदि ने बाहरी लोगों के साथ इस नए रोमांस को भुनाया और उनकी कहानियों को शहर से दूर रखा. जंगली फिल्म की बेशुमार सफलता ने एक नया प्रारूप तय किया. जिसको इन फ़िल्मों में देखा जा सकता है.
फिल्म निर्माताओं ने तब विदेशों में अपनी फ़िल्मों का व्यवसाय शुरू कर दिया था. संगम, लव इन टोक्यो, एन इविनिंग इन पेरिस, जैसी फ़िल्मों ने बैकग्राउंड, लोकेशन में आधुनिकीकरण के लिए विदेशी लोकेशन, स्विटजरलैंड, पेरिस, लंदन, टोक्यो में शूटिंग किया. यह दौर भारतीय दर्शकों को विदेशी दृश्यों, विदेशी लाइफस्टाइल, जीवन - शैली को दिखाने का तरीका था. ईस्टमैन कलर' में फिल्माई गई, जंगली ने कश्मीर की पूरी सुंदरता को सामने लाया। फिल्म की सिलवान सेटिंग और बर्फ से ढकी पहाड़ियां दर्शकों के लिए और रोमांच का अहसास कराती थीं, यह एक अनोखा एवं नया अनुभव था. एक सफल प्रयोग भी था.
जंगली फिल्म की रिलीज़ के वर्ष, तीन अन्य साउंडट्रैक थे, जो बहुत लोकप्रिय हुए, हम दोनो, गंगा जमुना और जब प्यार किससे होता है. तीनों फिल्मों में लगातार अच्छा संगीत था, लेकिन जंगली का संगीत कुछ और था, अज़ीब था, नया था, 'एहसां तेरा होगा मुझे पर' के सुरों से लेकर अपटेम्पो तक 'ऐ याय में मैं क्या सुकु सुकु', आकर्षक 'कश्मीर की कली हूं मैं', शानदार युगल गीत 'मेरे यार शब्बा खैर' तक, हर दर्शकों और श्रोताओं द्वारा गीत को बहुत खुशी के साथ प्राप्त किया गया था.
फिल्म देखने वालों के बीच जंगली की अपील और लोकप्रियता को दर्शाने वाला गीत 'याहू! चाहे कोई मुझे जंगले कहे! “इस गाने ने लोगों में उन्माद फैला दिया. इसका बहुत असर हुआ. यह उस दौर में बहुत पॉपुलर गीत था. उस दौर के युवाओं में मस्ती, ट्रिप, पिकनिक, पार्टी में इसने ट्रेंड स्थापित किया था. आज भी लगता नहीं है यह गीत इतना पुराना है. लगता है आज भी उतना ही अछ्छा है और प्रासंगिक भी है. सुनते हुए अंदर एक हलचल पैदा होती है, एवं गीत सुनते हुए मन खुश होता है, हम सुनते हुए गाने की मस्ती में बह जाते हैं. यह उस गीत के साथ एक सुखद एहसास जुड़ा है. सैकड़ों बार यह गीत सुना और गुनगुनाया मन एक हवा के साथ बह जाता है उस अनुभव को शब्दों से बताना मुश्किल हो रहा है.
यह गीत शंकर-जयकिशन ने रचा था,जिसे कविराज शैलेंद्र ने लिखा, और इसे मोहम्मद रफ़ी ने गाया, लेकिन गाने में 'याहू' की पूरी-पूरी, उन्मत्त चीख रफ़ी की नहीं थी. यह प्रयाग राज, पटकथा लेखक की है उसी के लिए सबसे अधिक संभावना नहीं थी.
रऊफ अहमद ने अपनी पुस्तक शम्मी कपूर: द गेम चेंजर में लिखा है कि "शुरुआत में जयकिशन ने 'याहू' को चिल्लाने का काम लिया था. जब यह महसूस किया गया था कि मोहम्मद रफ़ी के लिए ऐसा करना अव्यावहारिक होगा, रफी साहब प्रतिष्ठित गायक थे, सुरमाई शख्सियत के मालिक थे. उनकी इस असहजता को कविराज शैलेन्द्र समझ गए और उन्होंने इसका उपाय किया, जबकि उच्च स्वर गाते हुए संख्या, " लेकिन पहले दो रिहर्सल के बाद जयकिशन की आवाज कर्कश होने लगी। प्रयाग राज को तब बुलाया गया था, क्योंकि वह एक प्रशिक्षित गायक थे. उन्होंने अक्सर कोरस में शंकर-जयकिशन के लिए गाया था.प्रयाग चुनौती के लिए तैयार थे, और रफ़ी के साथ दो बार अभ्यास करने के बाद, गीत को आठ रीटेक में रिकॉर्ड किया गया था. अहमद कहते हैं, "प्रयाग राज को सामान्य होने में लगभग दो महीने लग गए. यह उस गीत की सफलता थी.
एक एहसास जो सबकुछ पा लेने के बाद की खुशी को बयां करता गीत है. फिल्म में शम्मी कपूर एवं सायरा बानो कश्मीर में एक तूफान में फंस जाते हैं फिल्म में शम्मी कपूर एक मगरूर आदमी के रोल में थे, जिनका आम जनजीवन से कोई मतलब नहीं था, वॊ सायरा बानो को अपरिपक्व, लड़की समझते हैं. कहते हैं मुहब्बत को करीब से देखने का एक यह रूप होता है कि आप सोती हुई लड़की को देखेंगे तो वो एक लड़की से कब आपकी नायिका बन जाए,हो सकता है भावनाएं काबू करना मुश्किल हो जाए, शम्मी कपूर के साथ यही होता है. की उन्होंने मुहब्बत को नजदीक से देखा ही नहीं उसकी धड़कन को भी सुना. तब दुआ करते हैं कि भगवान तूफान रोक दो फिर कभी कुछ नहीं मांगूंगा, क्योंकि अब मुझसे अपनी भावनाएं बस में करना मुश्किल हो रहा है, यकायक तूफान रुक जाता है, वो याहू... याहू... चिल्लाने लगते हैं. सायरा बानो भी अज़ीब खुशी को महसूस करती हैं कि जिसको पत्थर समझा वो तो इंसान है बल्कि ऐसा इंसान जो प्यार कर सकता है. दोनों तूफान रुक जाने एवं दोनों के अंदर की खुशी एवं इजहार ए मुहब्बत को बयां करते हुए गीत का सुखद एहसास है. जिसमें कितने नायक - नायिकाएं डूब गईं.
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