"मिस्टर एंड मिसेज 55" फिल्म
गुरुदत्त साहब-मधुबाला जी की कॉमिक जुगलबंदी
"मिस्टर एंड मिसेज़ 55"
गुरुदत्त साहब हिन्दी सिनेमा में कल्ट फ़िल्मों के उस्ताद माने जाते हैं. विशेष रूप से प्यासा, कागज के फूल और साहिब, बीबी और गुलाम, चौदहवीं का चाँद, आदि दार्शनिक क्लासिक फिल्मों के लिए याद किए जाते हैं. औसत सिनेमाई समझ वाले लोग गुरुदत्त साहब को एक ही प्रकार के रोल करने वाला अभिनेता एवं ट्रेजीडिक फ़िल्मों का फ़िल्मकार कहते हुए हिन्दी सिनेमा के आला मयार रखने वाले गुरुदत्त साहब को छूने की कोशिश करते हैं. गुरुदत्त साहब कॉमिक अंदाज़ में भी प्रवीण थे. इस रूप को देखने समझने के लिए हमें इस 'मिस्टर एंड मिसेज़ 55' फिल्म को देखना चाहिए. गुरुदत्त साहब ने हंसाने - गुदगुदाने वाली कॉमेडी फिल्म का भी निर्देशन के साथ - साथ चुलबुली मधुबाला के साथ नायाब अभिनय किया उस कालजयी फिल्म का नाम 'मिस्टर एंड मिसेज 55' है. इस फिल्म को देखने के बाद गुरुदत्त साहब को हरफ़नमौला कलाकार कहने से उनके आलोचक भी खुद को रोक नहीं पाएंगे. गुरुदत्त साहब ने 'मिस्टर एंड मिसेज 55' फिल्म का निर्माण 1955 में किया था. यह एक क्लासिक कॉमेडी है, वास्तव में, छद्म-महिला-मुक्ति आंदोलन पर एक कटाक्ष था. स्वतंत्रता के बाद के दौर में भारत में स्त्री विमर्श की जमीन तैयार कर रहा था. कॉमेडी में लिपटे आहत (भारतीय) पुरुष-मानस का प्रतिनिधित्व करता है. उस दौर में ज़्यादातर लोग स्त्री विमर्श पर बात नहीं करते थे क्योंकि उनकी कोई समझ नहीं थी. गुरुदत्त साहब ने नारी सशक्तिकरण के साथ ही भारतीय संविधान के उसके दुरुपयोग का विषय था, एवं एवं एक स्त्री के कोमल मन के एक - एक रेशे को मधुबाला जी ने अपनी चंचलता से खोलकर रख दिया है. इस फिल्म में मधुबाला जी का अल्हडपना देखने लायक है. मधुबाला जी अभिनय के लिहाज से एक नदी के प्रवाह की भांति बह पड़ती हैं. यूँ तो मधुबाला जी देवानंद साहब एवं किशोर कुमार के साथ अपनी चंचलता से सिल्वर स्क्रीन को जीवंत कर देती थीं, लेकिन गुरुदत्त साहब के साथ उनकी कॉमिक जुगलबंदी अद्वितीय देखने लायक थी.
'मिस्टर एण्ड मिसेज़55' फिल्म एक कॉमिक नाटक है जो आधुनिक विवाह पर आधारित है,कॉन्ट्रैक्ट मैरिज थीम पर आधारित एक अद्भुत फिल्म है. जिसे गुरुदत्त साहब के करीबी सहयोगी अबरार अल्वी ने लिखा था.फिल्म की कहानी में कठोर महिला सीता देवी (ललिता पवार) पर आधारित है,जो अपनी भतीजी - अनीता (मधुबाला) की गार्डियन के रूप में होती हैं.बेरोज़गार कार्टूनिस्ट - प्रीतम (गुरुदत्त साहब) के साथ अपनी सुविधा के लिए करती है ताकि वह अपनी भतीजी अनीता(मधुबाला) पर पूर्ण नियंत्रण कर सके. अनीता (मधुबाला) अपने पिता के द्वारा वसीयत कुछ इस तरह बनाई गई, कि बीस साल की उम्र हो जाने के छह महीने बाद शादी करने के बाद सम्पत्ति का मालिकाना हक कानूनी रूप से मिल जाएगा.
कट्टर नारीवादी, सीता देवी(ललिता पवार) महिलाओं के विवाह के खिलाफ हैं और संपत्ति की कानूनी उत्तराधिकारी बनने के उद्देश्य में सफल हो जाने के बाद प्रीतम के साथ अनीता को तलाक देने का सौदा करती हैं. सीता देवी (ललिता पवार) प्रीतम (गुरुदत्त साहब) एवं (अनीता) मधुबाला जी दोनों को कभी न मिलने की शर्त भी रखती हैं. बाद में जल्द ही तलाक का कारण भी पैदा कर देती है. सीता देवी (ललिता पवार) वह नहीं जानती कि यह जोड़ी पहले ही मिल चुकी है, वो अनभिज्ञ हैं कि दोनों के अन्दर एक - दूसरे के दिल में सॉफ्ट कॉर्नर है.प्रीतम (गुरुदत्त साहब) को उनकी शादी के बाद अनीता (मधुबाला) से दूर रखा जाता है, लेकिन वह उसका अपहरण कर लेता है और उसे अपने भाई के पारंपरिक घर में ले जाता है. घर में रहते हुए, अनीता (मधुबाला) की प्रीतम की भाभी से दोस्ती हो जाती है. अनीता (मधुबाला) प्रीतम (गुरुदत्त)की पत्नी के रूप में खुद को ढालने लगती है. प्रीतम (गुरुदत्त) चिंतित है कि उसने अनीता को खो दिया है,अनंत अदालत को झूठे, आपत्तिजनक साक्ष्य प्रदान करके प्रीतम ((गुरुदत्त) तलाक की प्रक्रिया को बढ़ाने में खुद ही मदद करने लगता है. प्रीतम (गुरुदत्त) का दिल टूट जाता है, और वो मुंबई छोड़ देता है, लेकिन अनीता अब प्रीतम के लिए अपनी भावनाओं को पहिचान लेती है. अंततः हवाई अड्डे पर उससे मिलने के लिए दौड़ पड़ती है. अंत में, युगल फिर से मिल जाता है.
'मिस्टर एंड मिसेज़55' की कहानी कॉमिक टाइमिंग पर सटीक बैठती है. गुरुदत्त साहब ने फिल्म को इतने दूरदर्शी अंदाज़ से निर्देशित किया है, कि यकीन करना मुश्किल है, कि क्या यह वही निर्देशक है, जिसने 'मिस्टर एंड मिसेज़55' जैसी कॉमिक फ़िल्म के बाद उसी निर्देशक ने बाद में प्यासा और कागज़ के फूल जैसी संजीदा फ़िल्मों का निर्माण किया. गुरुदत्त साहब का कॉमिक दृष्टिकोण लाजवाब है. फिल्म एक मिनट के लिए भी बोरियत महसूस नहीं होने देती. 'अबरार अल्वी' की फिल्म कॉमेडी से ज्यादा व्यंगात्मक शैली के कारण दर्शकों को बांधे रखती है. दर्शक फिल्म के प्रवाह में बहते चले जाते हैं. फ़िल्म विमर्श से शुरू होती है, निष्कर्ष तक ले जाती है. जिसे देखने के लिए दर्शकों में संतुष्टि का भाव होता है. 67 साल बाद भी फिल्म प्रासंगिक है. फिल्म सिनेमाई विविधता से भरपूर है.
कहानी में इसका एक पक्ष यह है, कि भारतीय समाज़ पुरुष प्रधान तो है ही इससे इंकार नहीं किया जा सकता है, उन दिनों कुछ ज्यादा प्रभावी था. देखा जाए तो आज भी कम नहीं है, लेकिन इसका एक पक्ष इस बात को उजागर करता है, कि दुनिया किसी भी रूप में पूर्ण नहीं हो सकती, फिल्म नारी-मुक्ति आन्दोलन के खोखलेपन को उजागर करता है. स्त्री की मुक्ति का अर्थ उसके जीवन में पुरुष के महत्व को कम करना नहीं है. यह दुनिया स्त्री - पुरुष दोनों के परस्पर सहयोग, प्रेम के समन्वय पर टिकी हुई है. हालाँकि गूढ़ देखा जाए तो स्त्री का योगदान पुरुष से कहीं अधिक है. केवल एक पक्ष को स्पष्ट करते हुए स्त्री विमर्श में स्त्री को पुरुष से परहेज़ सिखाना, अनावश्यक प्रतिकार दर्शकों को व्यंगात्मक शैली से भी वाकिफ़ होना पड़ेगा. प्रीतम (गुरुदत्त) द्वारा बनाए गए कार्टून में सीता देवी(ललिता पवार) को रोमन तांगे की हाथ में चाबुक लिए रोमन रथ की सवारी करते हुए दिखाया गया है. यह एक निरंकुशता का जीता जागता एक रूप है. जो स्त्री विमर्श में कभी - कभार छुप जाता है. निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो, स्त्री की दुर्दशा ज्यादा है, लेकिन मूलतः देखा जाए तो जिसके हाथ में ताकत है, वो कमजोर का शोषण करता है, अधिकाशं स्त्री - पुरुष में भी यही है, एक पक्षीय कुछ भी कहा नहीं जा सकता.
गोल्डन एरा में एक - एक गीत एक - एक फिल्म हज़ारों कहानियां समेटे हुए है. इसी फिल्म से नशीला संगीत रचने वाले ओपी नय्यर भी संगीत की दुनिया के एक अजूबा थे, जो बिल्कुल अनपढ़ थे, वहीँ संगीत की कोई शिक्षा नहीं ली, फिर भी महान संगीतकारों की लिस्ट में शुमार हैं. इसी फिल्म से 'ओपी नैय्यर' एवं गुरुदत्त साहब के सफ़र की शुरुआत हुई थी. फिल्म का संगीत संगीत प्रेमियों के लिए कभी न भूलने वाला संगीत है. वहीँ जॉनी वॉकर पर फ़िल्माया गीत 'जाने मेरा कहां जिगर गया जी' अमरत्व प्राप्त कर चुका है.इसके अलावा गाने में ठंडा हवा काली घाटा, प्रीतम आन मिलो, चल दिए बंदा नवाज, उधर तुम हसीन हो इधर हम जवान हैं, ऐ जी दिल पर हुआ ऐसा जादू आदि गाने आज भी प्रासंगिक हैं. इस फिल्म में गीता दत्त, शमशाद मुबारक, रफी साहब ने अपनी आवाज से नवाजा था. मन्ना डे के द्वारा गाई गई कैबरे कव्वाली - "मेरी दुनिया लूट राही थी और मैं खामोश था" इस गीत में गुरुदत्त साहब की भाव भंगिमाओं को देखते ही बनता है, गाने के खूबसूरत बोल मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे हैं, गाने का पिक्चराइजेशन भी गुरुदत्त साहब की आला सिनेमाई देखी जा सकती है. इस कव्वाली में ओपी नय्यर ने जो संगीत रचा है, वो कव्वाली के साथ मेल नहीं खाता, लेकिन यह गीत फिल्म के क्लाईमेक्स को स्पष्ट कर देता है. वीके मूर्ति गुरुदत्त साहब की टीम के उत्तम सदस्य थे. उनकी सिनेमैटोग्राफी हमेशा की तरह शानदार है. ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म एक नमूना है, जो पचास के दशक के बॉम्बे के जीवन को यथार्थवादी, समाज को भी सौंदर्यपूर्ण तरीके से दिखाते हैं, प्रोडक्शन डिजाईनिंग उतना आला है, कि सिनेमैटोग्राफी सीख रहे बच्चे इस फिल्म से ही सीख सकते हैं, जो सिद्ध करता है, कि गुरुदत्त साहब केवल एक फ़िल्मकार नहीं बल्कि एक संस्थान थे.
गुरुदत्त साहब ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह न केवल एक उत्कृष्ट निर्देशक, कहानीकार बल्कि एक उत्कृष्ट अभिनेता भी हैं. गरीब कार्टूनिस्ट की भूमिका को पूर्ण कर देते हैं. ललिता पवार की भूमिका निश्चित रूप से उनके अभिनय का एक क्लास है. जॉनी वॉकर गुरुदत्त की फिल्मों का एक अभिन्न हिस्सा थे.उन्होंने अपने विपरीत अभिनीत यासमेन के सहयोग से दर्शकों को हंसाने में सफल होते हैं. इस फिल्म में चंचलता, प्रतिपूर्ति, शोखियों की मल्लिका मधुबाला जी किसी भी स्तर पर गुरुदत्त साहब से कम नहीं है. एक अल्ट्रा-मॉडर्न लड़की से एक पारंपरिक भारतीय लड़की में उनका परिवर्तन दिल को छू लेने वाला है. वास्तव में, दुनिया की सबसे खूबसूरत महिलाओं में से एक होने के अलावा, वह एक प्रतिभाशाली अदाकारा हैं, जो मानवीय संवेदनाओं को खुलकर सिल्वर स्क्रीन पर उतार देती हैं.
'मिस्टर एंड मिसेज़ 55' फिल्म देखने के लिए यूँ तो कई कारण हो सकते हैं, फ़िल्म में यादगार नशीला संगीत, स्त्री- पुरुष के बीच के अंतर्विरोधों स्त्री के कोमल मन को दर्शाती हुई फिल्म में गुरुदत्त साहब एवं मधुबाला जी की मदहोश करने वाली जुगलबन्दी, इठलाना तो मधुबाला जी का अपना सिग्नेचर स्टाइल था, लेकिन फिल्म में गुरुदत्त साहब का कॉमिक अंदाज़ निखरकर सामने आता है. गुरुदत्त साहब की आला सिनेमाई समझ एवं सिनेमैटिक समझ का जीता जागता दस्तावेज है.....
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